8TH SEMESTER ! भाग- 123( Bloody End of 3rd Semester- 3)
"हां सर,हम उसे ला रहे है..."उस थ्री स्टार की वर्दी पहने हुए पुलिस वाले ने फोन पर किसी से कहा और मेरी तरफ देख कर बोला"चल ...तेरे प्रिन्सिपल का फोन आया है,.."
"मैने तो पहले ही कहा था कि मुझे कुछ नही मालूम...जो लड़के मेरा नाम बता रहे है वो मुझसे खुन्नस खाए हुए है...इसीलिए उन्होने मेरा नाम बताया..."
"मैने तुझसे पहले भी कहा है और अब भी कह रहा हूँ कि मेरे कंधे पर ये तीन स्टार ऐसे ही नही लगे है...चूतिया किसी और को बनाना...अब चल, तेरा प्रिंसिपल फ़ोन पे फ़ोन किये जा रहा है... उसका क्लासमेट कलेक्टर है, वरना उसकी बात मै धुए कि तरह उड़ा देता .."
उसके बाद सारे रास्ते भर मैने अपना मुँह नही खोला क्यूंकी धीरे-धीरे मुझे ऐसा लगने लगा था कि मेरे दिमाग़ पर इस समय शनि और मंगल कुंडली मार कर बैठे हुए है. इसीलिए मैं जो कुछ भी सोचता हूँ,जो कुछ भी करता हूँ...वो सब उल्टा मुझे ही आकर लगता है.....
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हमारी पहली प्राब्लम तो लगभग सॉल्व हो गयी थी यानी कि पुलिस केस का सारा झंझट लगभग -लगभग समाप्त हो चुका था अब झंझट था तो वो था गौतम के बाप का...
"पुलिस अंकिल...मेरा दोस्त गौतम कैसा है..उसे होश आया या अभी तक लेटा हुआ है..."जीप से उतरते हुए मैने पुछा, पूछा क्या..एक हिसाब से पूरी पुलिस पर ताना मारा की.. सालो ये लो, कुछ उखाड़ नहीं पाए मेरा...
"अपने प्रिन्सिपल की पावर का यूज़ करके तू पुलिस के झमेले से तो बच जाएगा...लेकिन उस गुंडे से कैसे बचेगा जिसके लिए नियम,क़ानून कोई मायने नही रखता..."मुस्कुराते हुए उसने जवाब दिया "मुझे इस केस मे कोई खास दिलचस्पी नही है लेकिन तुझे आगाह कर देता हूँ कि तेरा बुरा वक़्त अब शुरू होने वाला है..."
"वो क्या है ना सर... कि इस वक़्त मुझे कोई दमदार डाइलॉग याद नही आ रहा है, इसलिए आप फिलहाल जाओ...आपके इस सवाल का जवाब किसी और दिन दूँगा और यहाँ मेरे से बड़ा गुंडा कोई नहीं..."
कॉलेज के सामने पुलिस जीप से उतर कर मैने गॉगल लगाया और फुल रोल मे कॉलेज के अंदर घुसा....मन तो नही था क्लास जाने का लेकिन हॉस्टल मे अकेले रहता तो मेरा दिमाग़ मुझे फिर गौतम के बाप से पहले ही मार देता, इसलिए मैने क्लास अटेंड करना ही बेहतर समझा... .क्लास की तरफ आते हुए सामने मुझे ऐश दिखी तो मेरे कदम खुद ब खुद रुक गये ,मैं जानता था कि वो इस समय मुझसे बेहद ही खफा होगी और मुझपर गुस्सा करेगी, infact उसकी नजर मे इस वक़्त मै इस दुनिया का सबसे घिनौना इंसान शायद रहू... लेकिन मेरी नजर मे तो वो मेरी भूरी बिल्ली ही थी.. जिसे मैने पहली नजर से प्यार किया था. इसलिए मै उसकी तरफ बढ़ा और ना चाहते हुए भी मुस्कुराया ताकि उसकी मुस्कान देख सकूँ...अपने सामने अचानक मुझे पाकर ऐश कुछ देर तक मुझे यूँ ही देखती रही और फिर आँखो मे मेरे लिए दुनियाभर की नफ़रत भरे हुए वहाँ से आगे बढ़ गयी...
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पिछले कुछ दिनो मे मुझे देखकर उसके होंठो मे जो एक प्यारी सी मुस्कान छा जाती थी ,उसकी जिस मुस्कान का मैं दीवाना था , उसकी जिस मुस्कान पर मैं दिल से फिदा था...आज उसके होंठो से वही मुस्कान गायब थी...उसकी जिन भूरी सी आँखो से मुझे प्यार था,.. जिनसे सबसे ज़्यादा लगाव था ,इस वक़्त वो आँखे एक दम लाल थी...उसकी उन्ही आँखो मे मैने अपने लिए दुनियाभर की नफ़रत देखी ,जिनमे मैं हमेशा अपने लिए एक प्यार, एक अहसास देखना चाहता था....
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"ऐश ...रुकिए तो .." बिना कुछ सोचे-समझे,बिना किसी की परवाह किए मैं ऐश के पीछे भागा...
"अरमान ,रास्ता छोड़ो..."मुझे अपने सामने पाकर उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया...
"गौतम की वजह से हम, अपन दोनो के बीच मे ख़टाश क्यूँ पैदा करे...चल हाथ मिला..."
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"तुमसे हाथ मिलाउ मै... जिसके कारण गौतम मरने कि कगार तक पहुंच गया था.. तुम सामने से हटोगे या मै बदतमीजी का केस करू तुम पर..."इतना बोलकर वो चुप हो गई और अपना चेहरा दूसरी तरफ करके मेरे वहाँ से जाने का इंतज़ार करती रही...
उसके वो शब्द,उसकी ये खामोशी तीर बनकर मेरे लेफ्ट साइड मे चुभ रही थी...आज अगर ऐश मुझे सॉरी बोलने के लिए कहती तो मैं एक बार नही हज़ार बार उसे सॉरी बोलता... लेकिन साली परेशानी तो यही थी कि वो आज कुछ बोल ही नही रही थी....
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"ऐश ..."उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ाते हुए मैने फिर कहा...
"दूर जाओ मुझसे..समझ नहीं आता ."चीखते हुए उसने कहा और सबके सामने मुझे धक्का दिया लेकिन मैं फिर भी उसी की तरफ बढ़ा... सबके सामने अपनी बेज़्जती का अंदेशा होने के बावजूद मैं ऐश की तरफ बढ़ा...
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मैं ये नही कहता कि मेरे मन मे ऐश के सिवा किसी और लड़की का ख़याल नही आता ,मैं हर दिन ऐश के साथ-साथ कई दूसरी लड़कियो के बारे मे भी सोचता लेकिन ऐश के लिए मेरे अंदर जो अहसास ,जो लगाव है वो अहसास,वो लगाव किसी दूसरी लड़की के लिए आज तक नही हुआ था... मैं ये बात ढोल-नगाड़े पीट पीट कर इसलिए कह सकता हूँ क्यूंकी...ऐश मेरे मन मे नही बल्कि मेरे दिल मे बसी थी....
मैं ये नही कह रहा कि मेरा प्यार किसी फिल्मी प्यार की तरह हंड्रेड पर्सेंट है लेकिन ये मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जितना भी पर्सेंट मेरे दिल मे उसके लिए मोहब्बत है ,वो एक दम सच है और पवित्र भी... वरना मैं कॉलेज मे इस वक़्त सिर्फ़ एक लड़की के लिए... सिर्फ़ और सिर्फ़ और सिर्फ़ एक लड़की के लिए सबके सामने अपनी बेज़्जती सहन नही करता.... गौतम ने भी हॉस्टल मे बेइज्जती करने की कोशिश की थी मेरी, उसका हश्र देख ही चुके हो...
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"अरमान,तुम मुझे अपना दोस्त कहते थे, पर अब पता चला कि तुम तो बस य्याश किस्म के वो इंसान हो,जिसे किसी की कोई परवाह नही है...अब सामने से हट जाओ,वरना कही ऐसा ना हो कि...मैं सबके सामने तुम पर हाथ उठा दूं..."
"मुझे कोई फरक नही पड़ता कि यहाँ कौन-कौन है और ना ही मुझे इसकी परवाह है..."
"लेकिन मुझे परवाह है...खुद की और गौतम की....गौतम सच ही कहता था कि दोस्ती अपने स्टेटस के बराबर वाले लोगो के साथ ही करना चाहिए... तुम जैसे लफंगे लोग सिर्फ मार पीट करना जानते है "
उसके बाद मैने सिर्फ़ उसे वहाँ से जाते हुए देखा,क्यूंकी मेरे पास अब कोई शब्द नही थे जिसका इस्तेमाल करके मैं उसे एक बार फिर से आवाज़ दूं या रोकने की कोशिश करू... उसने अभी-अभी कहा था कि इस जहांन मे उसे सिर्फ़ दो लोगो की परवाह है... एक खुद की और एक अपने प्यार की लेकिन मुझे तो परवाह सिर्फ़ एक की थी और वो ऐश थी.. जिसने मुझसे अभी-अभी नफ़रत करना शुरू किया था. मैं अब भी उससे बात करना चाहता था ये जानते हुए भी कि वो अब मुझसे बात नही करना चाहती है लेकिन मेरे दिल ने ,उसके लिए मेरे जुनून ने मुझे फिर से उसके पीछे भागने लिए मुझे मज़बूर कर ही दिया.... इसलिए मै फिर से उसके पीछे भागा
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"ऐश ,यार एक मिनिट सुन तो ले कि मैं क्या कहना चाहता हूँ..."उसकी कार के पास पहूचकर मैने खिड़की से अंदर देखा और एक बार फिर से ऐश को आवाज़ दी"बस एक मिनट..प्लीज ."
"दिव्या...तू कार आगे बढ़ा.. कुछ लोगो को जब तक उनकी औकात ना दिखाओ, खुद को हमारे बराबर का मान लेते है... Get the hell out of here...." एक बार फिर मुझसे मुँह फेर कर वो बोली...
माँ कसम खाकर कहता हूँ कि उस वक़्त मुझे ऐसा लगने लगा जैसे कि उस एक पल मे मेरे सारे सपने जो मैने ऐश को रेफरेन्स मानकर सोचे थे.. .मेरी सारी ख्वाहिशें ,जो कि ऐश को लेकर थी... इस दिल के सारे अरमान ,जिसके रग-रग मे वो बसी हुई थी.. .मेरे उन सारे सपनो ने, मेरे उन सारी ख्वाहिशों ने ,मेरे उन सारे अरमानो ने उस एक पल मे अपना दम तोड़ दिया था... दिल किया कि यही रोना शुरू कर दू और तब तक रोता रहूं जब तक ऐश खुद आकर मुझे चुप ना कराए... दिल किया कि पागलो की तरह अपना सीना तब तक पीटता रहूं ,जब तक कि मेरी रूह मेरे जिस्म से ना निकल जाए... मेरी उस हालत पर जब ऐश ने मुझे पलट कर भी नही देखा तो तुरंत मेरे अंदर उस नरम दिल वाले अरमान को मारकर उसकी जगह एक खुद्दार, घमंडी शक्सियत रखने वाले अरमान ने ले ली.. जिसे पिछले दिनों किसी ने इंग्लिश मे Narcissist कहा था यानी ~आत्माकामी. कहा था ना मैने की मेरे अंदर दो -दो अरमान है... जो सिचुएशन के अनुसार मेरी चरतना पर काबू करने की कोशिश मे लगे रहते है... अब इसी सिचुएशन को ले लो.. ईशा के साथ मै बडी नरमी से पेश आया लेकिन ईशा द्वारा मुझे धिक्कारने के बाद तुरंत मेरा घमंडी रूप फिर से activate हो गया...
"ये तुम क्या कर रहे हो..."जब मैने ऐश के हेडफोन को जो उसने मुझे इग्नोर करने के लिए अभी -अभी कान मे फसाया था, उसे निकाल कर बाहर फेक दिया तो वो मुझपर चिल्लाते हुए तुरंत कार से बाहर निकली और मुझे थप्पड़ मारने के लिए अपना हाथ तक उठा दिया ....
"शुक्र मना कि तेरे इस हाथ को मैने रोक लिया... वरना तेरा ये हाथ यदि ग़लती से भी मश्री अरमान के गाल को छु जाता ना तो जो हाल तेरे आशिक़ का किया है उससे भी बुरा हाल तेरा करता... तेरा आशिक़ तो हॉस्पिटल मे ज़िंदा पड़ा है लेकिन तुझे तो मैं सीधे उपर भेजता...साली, तू खुद को समझ के क्या बैठी है बे ..."मैने कार का गेट खोला और ऐश को अंदर फेकते हुए कहा"जिसपर तुझे गुस्सा आता है तो तू उससे बात करना बंद कर देती है लेकिन जब मुझे किसी पर गुस्सा आता है तो मैं उसे बात करने के लायक नही छोड़ता...अब चल जल्दी से निकल इस चुहिया के साथ वरना तेरे बाप को तेरे आशिक़ के बगल मे एक और बेड बुक करना पड़ेगा...तुम दोनों अपने -अपने बापो से कह देना की अरमान ऐसा बोला रहा था और पिछवाड़े मे दम है, तो उखाड़ ले मेरा...जो उखाड़ना है... "
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इसके बाद एक तरफ वो दोनों कार मे आगे बढ़ी और इधर मै.... पार्किंग मे मैने आज ऐश से अपने लगभग सारे लगाव को खत्म कर लिया था और इस समय मेरा गुस्सा मुझपर पहले से भी ज़्यादा हावी था... हॉस्टल पहुचने के बाद मुझे वॉर्डन ने कहा कि पुलिस केस को तो वो लोग कैसे भी करके संभाल लेंगे...लेकिन गौतम के बाप को रोकना उनके बस मे नही है,इसलिए बेहतर यही होगा कि मैं कुछ हफ़्तो के लिए अपने घर चला जाउ. वार्डन का ये सुझाव मुझे ठीक लगा, वैसे भी इस कॉलेज मे अब रखा क्या था मेरे लिए... जहा एक ओर डर -डर कर जीना पडे तो दूसरी ओर...जिसके लिए जीना चाहता था, उससे खुद आज सारे बंधन तोड़कर मै आया था. इसलिए बिना किसी को कुछ बताये वार्डन के सिर्फ एक बार बोलने पे, मै हाईवे के पास पहुंच गया... जहा से मुझे रेलवे स्टेशन के लिए ऑटो मिलता.
हाइवे के किनारे कांधे पर बैग लटकाये खड़ा मैं इस वक़्त बहुत सारी उलझनों से घिरा हुआ था... मेरे अंदर क्या चल रहा था ये मैं खुद भी ठीक तरीके से नही समझ पा रहा था. कभी मुझे गौतम के पप्पा जी दिखते तो कभी मेरे दोस्त मुझे दिखते.. तो कभी हॉस्टल मे लड़ाई वाला सीन मेरी आँखो के सामने छा जाता तो कभी ऐश के साथ आज हुई झड़प सीने मे एक टीस पैदा कर रही थी... कभी मैं खुद को गालियाँ देता कि मैने ऐश के साथ ऐसा बर्ताव क्यूँ किया तो कभी मेरा Narcissistic ~आत्माकामी रूप सामने आ जाता और मुझसे कहता कि...मैने जो किया सही किया,भाड़ मे जाए ऐश और उसका प्यार... सच तो ये था कि इस वक़्त मैं ठीक से किसी भी मैटर के बारे मे नही सोच पा रहा था और सारी दुनिया से अलग होकर हॉस्टल से हाइवे को जोड़ने वाली सड़क के सबसे अंतिम छोर पर बैग मे एक जोड़ी कपडे लिए खोया-खोया सा खड़ा था... मुझे इसका बिल्कुल भी होश नही था कि मेरे सामने से तीन-तीन ऑटो निकल चुके है... मुझे इस बात की बिल्कुल भी परवाह नही हो रही थी कि मेरे इस तरह से यहाँ खड़े रहने पर मेरी ट्रेन छूट सकती है... हॉस्टल मे मेरे दोस्तों को कुछ नहीं पता था और ना ही मैने घर मे कॉल काके बताया था की मै आ रहा हूँ...
मुझे तो बस वार्डन ने चुपके से निकल जाने को कहा और मै बिना किसी को बताये चुप चाप निकाल गया
"ओये...रुक...अबे रुक मुझे भी जाना है..."सिटी बस जब सामने से गुज़र गयी तो मुझे जैसे एका एक होश आया ,लेकिन सिटी बस तब तक बहुत दूर जा चुकी थी.....
जब सिटी बस निकल गयी तो मैं वापस अपने कंधे मे बैग टांगे हुए हॉस्टल से हाइवे को जोड़ने वाली सड़क के अंतिम छोर पर खड़ा हो गया और फिर से सारी दुनिया को भूल कर अपने अंदर चल रहे तूफान मे खो गया....
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क्या मैने ऐश के साथ पार्किंग मे जो किया वो सही था...?? कहीं मैने आज अपने हाथो ही अपने अरमानो का तो गला नही घोंट डाला..?? .क्यूंकी यदि ऐश की जगह कोई और भी होता,यहाँ तक मैं भी होता...तो अपने प्यार को चोट पहुचने वाले से नफ़रत करता... और ईशा ने भी आज वही किया,...ग़लत तो मैं ही था जो बार-बार उसके सामने खड़ा हो जा रहा था. उससे बात करने की मेरी ज़िद ने शायद उसे,मुझपर और भी ज़्यादा गुस्सा दिला दिया और फिर पार्किंग मे उसे धमकी देकर आना.... That was really my fault...मुझे ऐसा नही करना चाहिए था.. किसी भी हाल मे नही करना चाहिए था...
Shrishti pandey
08-Jan-2022 04:34 PM
Bahut sundar
Reply
Yug Purush
06-Jan-2022 09:46 PM
Thanx
Reply
Rakash
06-Jan-2022 05:30 PM
बहुत ही अच्छा लिख है
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